सावन के पहले सोमवार पर विशेष: ऋग्वेद के रूद्र से लेकर कल्याणकारी शिव तक, 4,500 वर्षों में कैसे बदला भोलेनाथ का स्वरूप

सावन के पहले सोमवार पर विशेष: ऋग्वेद के रूद्र से लेकर कल्याणकारी शिव तक, 4,500 वर्षों में कैसे बदला भोलेनाथ का स्वरूप

नई दिल्ली, 14 जुलाई। आज सावन का पहला सोमवार है—वह दिन जब करोड़ों श्रद्धालु भगवान शिव की उपासना करते हैं। Pew रिसर्च की मानें तो भारत में 45% हिंदू शिव को अपना आराध्य मानते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिन शिव को आज त्रिशूलधारी और शिवलिंग रूप में पूजा जाता है, ऋग्वेद में वे धनुषधारी रूद्र के रूप में वर्णित हैं?

ऋग्वेद के रूद्र गुस्सैल, आक्रोश से भरपूर और युद्धप्रिय थे। वे बाण चलाते थे और वनों में विचरण करते थे। वहीं यजुर्वेद आते-आते उनका स्वरूप शांत, कल्याणकारी और सर्वमंगलकारी हो जाता है। महाभारत और पुराणों में उनका "महादेव" और "भोलेनाथ" रूप स्थापित होता है।

रामायण में राम और रावण दोनों शिव के उपासक थे। वहीं लिंग पुराण और शिव पुराण में पहली बार शिवलिंग की महिमा का विस्तार होता है, जहां शिव को निराकार ब्रह्म का प्रतीक माना गया। 2,000 साल पहले के मंदिरों में शिव मूर्ति नहीं, सिर्फ लिंग रूप में पूजित होते थे।

4,500 वर्षों की इस धार्मिक यात्रा में शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक बन चुके हैं—जिनके रूप, नाम और उपासना की परंपराएं समय के साथ बदलती रहीं, लेकिन आस्था वैसी की वैसी रही।