नेहरू की विदाई: चीन युद्ध की हार ने तोड़ दिया मनोबल, आखिरी दिन पेड़ के नीचे अकेले बैठते थे; निधन पर पाकिस्तान ने भी झुकाया झंडा

27 मई 1964 को देश ने अपने पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को खो दिया। संसद के विशेष सत्र में उनकी अनुपस्थिति ने सभी को चौंका दिया। जब चिदंबरम सुब्रमण्यम ने कहा – "रोशनी चली गई", तो पूरा सदन स्तब्ध रह गया।
चीन से 1962 की लड़ाई में हार के बाद नेहरू मानसिक और शारीरिक रूप से टूट चुके थे। उनकी छवि पर गहरा आघात हुआ। रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन को इस्तीफा देना पड़ा और खुद नेहरू पर भी तीखी आलोचनाएं हुईं।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा के अनुसार, युद्ध के बाद नेहरू के कंधे झुक गए थे और चेहरा थका हुआ लगता था। इस दौरान वे परिवार के साथ कश्मीर भी गए, लेकिन भीतर से टूट चुके थे।
नेहरू की मौत पर न सिर्फ भारत शोक में डूबा, बल्कि पाकिस्तान ने भी अपने झंडे झुका दिए थे। उनके आखिरी दिन भारतीय राजनीति, कूटनीति और नेतृत्व की सबसे बड़ी परीक्षा का प्रतीक बन गए।