श्री जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव भगवान जगन्नाथ जी महाराज का मेला 14 जुलाई 21 तक होगा हर्षोल्लास से आयोजित
अलवर। भारतीय लोक जीवन में त्यौहार, मेले, धार्मिक उत्सवों आदि का विशिष्ट स्थान हैं जिनमें लोक संस्कृति, वहां का रहन-सहन एवं वेशभूषाएं परिलक्षित होती हैं। राजस्थान का सिंहद्वार और भर्तृहरि जैसे सन्तों की तपोभूमि कहे जाने वाला अलवर जिला जिसका मुख्यालय अरावली की उपत्यकाओं में बसा ऐसा सुरम्य शहर हैं जहां आस-पास स्थित अनेक प्राकृतिक स्थल, पौराणिक एवं धार्मिक महत्व के स्थान स्वतः ही जन-जन को आकर्षित करते हैं।
जिला मुख्यालय पर पुराने कटले में ही स्थित हैं भगवान जगन्नाथ का अनुमानतः 269 वर्ष पुराना मन्दिर। यहीं वह स्थान हैं जहां प्रतिवर्ष आषाढ शुक्ला नवमी से त्रयोदशी तक रथयात्रा महोत्सव का आयोजन होता है। कृष्णवर्णी भगवान की जिस दिन रथयात्रा सजे-धजे विशालकाय इन्द्र विमान रथ में शहर के मध्य से निकलती है तो लगता है पूरा शहर उनके दर्शनार्थ उमड पडा है, रास्ते में चारो तरफ नर-नारी एवं बच्चों का सैलाब सा नजर आता है। भगवान जगन्नाथ की यह रथ यात्रा वस्तुतः उडीसा के जगन्नाथपुरी की भांति उनकी बारात का स्वरुप होता है और जगन्नाथ मन्दिर से रूपबास के 6 किलोमीटर दूर स्थित जानकी मैया के मन्दिर में इसे पहुंचने में करीब 7-8 घंटे लग जाते हैं।
रुपबास पहुंचने के बाद प्रारम्भ होती है जगन्नाथ जी महाराज एवं जानकी मैया के विवाह की रस्में, जो पूर्ण विधि-विधान से सम्पन्न होती है। इनमें वरमाला महोत्सव को देखने तो बहुत बडी संख्या में लोग एकत्रित होते है और लकदक करती रंगीन रोशनी के मध्य वरमाला का यह मनोहारी दृश्य बहुत ही आकर्षक लगता है। जगन्नाथ भगवान के प्रति लोगों की अपार श्रृद्धा का ही परिणाम है कि मनौती मांगने वाले हर वर्ष हजारों की संख्या में जगन्नाथ मन्दिर से रूपबास मन्दिर तक हाथ में नारियल व पंखी लेकर दण्डौती देते हैं और भगवान से मनौती मांगते हैं। भगवान जगन्नाथ में आस्था का ही परिणाम है कि यहां रथ यात्रा के समय वर्षा अवश्य होती हैं।
:: मंदिर:
अलवर में भगवान जगन्नाथ का प्राचीन मन्दिर पुराने कटले में स्थित हैं।
मध्य में स्थित विशाल चौकोर खुले प्रांगण के ठीक सामने है गर्भगृह। परिक्रमा और गर्भ गृह में स्थित है भगवान जगन्नाथ की दो कृष्णवर्णी भव्य आदमकद प्रतिमाएं। इन प्रतिमाओं में एक चन्दन काष्ठ निर्मित चल प्रतिमा है, तो इसके ठीक पीछे ठोस धातु से निर्मित अचल प्रतिमा है। जब भगवान जगन्नाथ जानकी मैया को ब्याहने रूपबास पधारते हैं तभी यह अचल प्रतिमा जन सामान्य के दर्शनार्थ मन्दिर में उपलब्ध रहती है।
इन्हें बूढे जगन्नाथ भी कहते है। गर्भगृह में ही सीताराम जी महाराज व जानकी मैया की छोटी प्रतिमाएं प्रतिष्ठित है। मन्दिर में इन प्रतिमाओं का ऋतु एवं उत्सव के अनुरुप श्रृगांर किया जाता हैं।
:: भव्य रथ यात्राएँ:
अलवर में लक्खी मेले के रुप में आयोजित होने वाला यह महोत्सव भगवान जगन्नाथ व जानकी मैया के विवाह उत्सव के रुप में प्रतिवर्ष मनाया जाता हैं जिसमें हिन्दू परम्परा के अनुरुप सभी रस्म व रीति-रिवाज समारोहपूर्वक व पूर्ण विधि विधान के साथ सम्पन्न होते हैं। वरमाला के दिन जिले में सार्वजनिक अवकाश रहता है। मेला आयोजन इतने बडे स्तर पर होता है कि जिला एवं पुलिस प्रशासन को इसके लिए व्यापक प्रबंध करने होते हैं। रथ यात्रा में इन्द्र विमान प्रयोग में लाया जाता है जो अलवर के तत्कालीन राजघराने द्वारा बनवाकर मन्दिर को भेंट किया गया था और इसकी ऊंचाई का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके निकले से पूर्व रास्ते में पडने वाले पेडों की टहनियों को हटाना व बिजली एवं टेलीफोन के तारों को ऊंचा करना पडता हैं। बहलीनुमा बडे-बडे छह पहियों पर लगभग 15 फीट चौडे व 25 फीट लम्बे विशाल इस रथ पर चारों ओर झरोखों व रोशनी से लकदक करते सुरम्य वातावरण में जब भगवान जगन्नाथ की शोभायात्रा निकलती है तो चहुंऔर वातावरण भक्तिमय हो उठता हैं। जगन्नाथ मन्दिर से रूपबास तक के रास्ते में जितने भी मन्दिर पडते हैं वहां रथ ठहरती है और आरती की जाती है। आज से 10-15 वर्ष पूर्व रथ को दो हाथी खींचते थे किन्तु अब इसे ट्रेक्टर की सहायता से खींचा जाता है। रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ के रथ इन्द्र विमान के आगे-आगे घोडे, पट्टेबाज विभिन्न करतब दिखाते अनेक दल चलते है। वहीं अनेक आकर्षक झांकियां भी रथयात्रा की शोभा बढाती है। करीब 6 किलोमीटर लम्बे इस रास्ते व दोनो तरफ विशेषकर जगन्नाथ मन्दिर से नंगली का चौराहा तक तिल रखने भर की जगह नहीं मिलती है और श्रृद्धालु बडे भक्ति भाव से भगवान के दर्शनों को आतुर रहते है। आगे-पीछे भगवान से मनौती मानने वाले व्यक्ति सैकडों की संख्या में दण्डौती लगाते चलते हैं। भगवान जगन्नाथ की सजी-धजी शोभा यात्रा के रूपबास पहुंचने के दूसरे दिन से मेला प्रारम्भ होता है। जहां बडी संख्या में खाने-पीने, मनोरंजन व अन्य सामानों की सैकडों दुकानें लगती हैं।
रथ यात्रा के बाद दूसरा बडा आकर्षण होता है वरमाला महोत्सव। इस उत्सव को देखने के लिए भी बहुत बडी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं और भगवान की जय-जयकार करके अपने को धन्य समझते हैं। वरमाला का दृश्य वास्तव में बहुत मनोहारी लगता है। मेला स्थल पर मनोरंजन के अनेक कार्यक्रम होते हैं। इसी प्रकार लगातार चार दिन विवाह के अन्य सभी रीति रिवाजों का विधि विधान से निर्वहन किया जाता है और फिर त्रियोदशी के दिन भगवान जगन्नाथ जानकी जी को ब्याह कर वापिस पुराना कटला स्थित जगन्नाथ मन्दिर लौटते हैं, इस दिन भी रास्ते में लोगों की भारी भीड उनके दर्शनार्थ उमडती है। रथयात्रा के प्रारम्भ से लौटने तक जगन्नाथ जी के मन्दिर में बूढे जगन्नाथ जी की धातु निर्मित अचल प्रतिमा दर्शनार्थ रहती है जिसके दर्शनों के लिए भी भक्तगण बडी संख्या में मन्दिर आते हैं। जगन्नाथ जी के जानकी मैया के साथ मन्दिर में लौटने के बाद यह महोत्सव सम्पन्न हो जाता हैं।
निश्चय ही अलवर में प्रतिवर्ष जगन्नाथ के विवाह के रूप में आयोजित होने वाला यह रथ यात्रा महोत्सव राजस्थान में अद्वितीय है जिसमें लाखों लोग अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर अपनी भक्ति भावना का परिचय देते हैं।
: प्रशासनिक व्यवस्था
मेले व रथ यात्रा महोत्सव के बडे स्तर पर आयोजित होने के कारण मेले से काफी दिन पूर्व ही जिला प्रशासन संबंधित विभागों के अधिकारियों की बैठक आयोजित करता है और व्यवस्था संबंधी दिशा-निर्देश दिये जाते हैं। रथयात्रा से पूर्व सार्वजनिक निर्माण विभाग जहां मार्ग की सडकों की मरम्मत करता है वहीं भारतीय संचार निगम व विद्युत निगम मार्ग में पड़ने वाले तारों को रथ की ऊंचाई से अधिक ऊंचा करते हैं और मार्ग पर पेडों की टहनियां छंटवाई जाती है। मेला स्थल पर सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी नगर परिषद की रहती है। मेले के दौरान भारी वाहनों का आवागमन मेला मार्ग से बदला जाता है और सुरक्षा के कडे बन्दोबस्त किये जाते है।