थप्पड़ से बच्चे की मौत: क्या कहता है कानून? जानिए बच्चों के सुरक्षा और अधिकारों से जुड़ी कानूनी व्यवस्था

थप्पड़ से बच्चे की मौत: क्या कहता है कानून? जानिए बच्चों के सुरक्षा और अधिकारों से जुड़ी कानूनी व्यवस्था

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक दर्दनाक घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। नर्सरी में पढ़ने वाले महज साढ़े तीन साल के बच्चे की मौत सिर्फ इसलिए हो गई क्योंकि वह रो रहा था और टीचर ने उसे थप्पड़ मार दिया। बच्चे का सिर पास की बेंच से टकरा गया और उसे गंभीर चोट आई, जिससे उसकी मौत हो गई।

घटना के बाद यह सवाल एक बार फिर सामने आया है—क्या शिक्षकों को बच्चों को शारीरिक दंड देने का अधिकार है? भारतीय कानून इस बारे में क्या कहता है और बच्चों के क्या कानूनी अधिकार हैं?

भारत में बच्चों को शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना से बचाने के लिए कई कानून मौजूद हैं।
1. शिक्षा का अधिकार कानून (RTE Act), 2009** – इसकी धारा 17 के तहत स्कूलों में बच्चों को शारीरिक दंड या मानसिक प्रताड़ना देना पूरी तरह प्रतिबंधित है।
2. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 – इस कानून के तहत किसी भी बच्चे को चोट पहुंचाना या दुर्व्यवहार करना एक दंडनीय अपराध है। दोषी पाए जाने पर सज़ा और जुर्माना दोनों का प्रावधान है।
3. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 323 और 325 – ये धाराएं चोट पहुंचाने और गंभीर चोट पहुंचाने से संबंधित हैं, और शिक्षक पर इन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।

बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से सुरक्षित माहौल देना स्कूल की ज़िम्मेदारी है। विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षकों को बच्चों की भावनाओं को समझना चाहिए, न कि सज़ा देकर डराना।

यह घटना सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि देश की शिक्षा व्यवस्था और बच्चों की सुरक्षा को लेकर बड़ा सवाल है। अब समय आ गया है कि स्कूलों में 'डर' की नहीं, 'सम्मान' और 'सुरक्षा' की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाए।