सीधे नहीं चुने जाएंगे महापौर, पार्षद ही करेंगे चयन : झाबर सिंह खर्रा
जयपुर l नगर निकाय चुनाव में इस बार महापौर का सीधा चुनाव नहीं होगा चुने गए पार्षदों की ओर से ही महापौर का चुनाव किया जाएगा यह बात यूडीएच मिनिस्टर झाबर सिंह खारा ने पत्रकारों को बताई उन्होंने कहा कि वर्ष 2009 में जनता की ओर से सीधे महापौर का चयन किया गया था उस समय नगर निगम में महापौर अलग पार्टी का था तो निगम में बोर्ड दूसरी पार्टी का बना हुआ था जिसकी वजह से पूरे 5 साल तक महापौर और निगम के बोर्ड के पार्षदों के बीच टकराव के हालात बन रहे आपस में खींचतान चलती रही जिसकी वजह से नगर निगम के विकास कार्य बाधित हुए इसलिए प्रदेश सरकार ने इस विषय पर गंभीरता से स्टडी की है इसके बाद यह निर्णय लिया गया है कि फिलहाल नगर निगम में चुने गए पार्षद ही महापौर का चयन करेंगे l
प्रदेश के भजन लाल सरकार ने पहले ही इस बार जयपुर जोधपुर और कोटा में एक ही नगर निगम सुनिश्चित किए जाने की बात कही है आगामी चुनाव में जयपुर जोधपुर और कोटा इन तीनों शहर में दो की जगह अब एक नगर निगम मानकर चुनाव कराए जाएंगे अभी जयपुर में जयपुर नगर निगम हेरिटेज और जयपुर नगर निगम ग्रेटर दो नगर निगम है इसी तरह से कोटा और जोधपुर में भी दो नगर निगम हैं लेकिन प्रदेश की भजनलाल सरकार ने अब इन तीनों शहरों में पहले की तरह एक ही नगर निगम बनाए जाने की घोषणा पहले ही कर दी है l जानकारी के अनुसार प्रदेश में नगर निकाय चुनाव कब होंगे इसके बारे में अभी असमंजस की स्थिति बनी हुई है हालांकि प्रदेश की यूडीएच मिनिस्टर झाबर सिंह खर्रा पहले आगामी दिसंबर माह में चुनाव करवाने की बात कह रहे थे अब जनवरी माह में चुनाव करवाने की बात कह रहे हैं साथ ही यूडीएच मिनिस्टर यह भी कहते हैं कि सरकार वन स्टेट वन इलेक्शन के तहत ही चुनाव करवाने का विचार रखती है लेकिन नगर निकाय चुनाव की तारीखों को लेकर प्रदेश के निर्वाचन विभाग में भी किसी भी तरह की प्रतिक्रिया अभी तक नहीं दी है हालांकि प्रदेश के निर्वाचन विभाग नगर निकाय चुनाव की तैयारी में तो जुटा हुआ है लेकिन चुनाव कब होंगे इसके बारे में निर्वाचन विभाग की ओर से स्थिति स्पष्ट नहीं की जा रही इसका एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि सरकार और निर्वाचन विभाग को ओबीसी आयोग की रिपोर्ट का इंतजार है जब तक ओबीसी आयोग की रिपोर्ट नहीं आ जाती तब तक नगर निकाय के चुनाव संपन्न होना नामुमकिन है इसलिए ओबीसी आयोग की रिपोर्ट आने के बाद ही निर्वाचन विभाग इस मामले में आगे अपनी कार्रवाई को गति देगा l
हालांकि यह बात बिल्कुल सही है कि जनता की ओर से सीधे महापौर चुने जाने की प्रक्रिया में जब महापौर अलग पार्टी का और नगर निगम में बोर्ड दूसरी पार्टी का बन जाता है तो फिर निश्चित रूप से नगर निगम के कार्य बाधित होते हैं महापौर और नगर निगम के बोर्ड के बीच आपस में तनातनी बनी रहती है जिसकी वजह से ना तो वार्डों में विकास कार्य ठीक तरह से हो पाते हैं और ना ही शहर के विकास कार्य ठीक तरह से संपादित हो पाते हैं इस तरह के टकराव को देखकर प्रदेश सरकार भी काफी परेशान और विचलित रहती है यही वजह है कि प्रदेश की भजनलाल सरकार पार्षदों से ही महापौर का चयन करवाने के बारे में निर्णय ले रही है l