व्यक्ति धर्म करने में सोचता है परंतु अधर्म करने में नहीं-मुनि सुप्रभसागर

बिजौलियां(जगदीश सोनी)। मनुष्य को जीवन में अनावश्यक चीजों से बचना चाहिए। जिससे परिग्रह कम हो सके। आज व्यक्ति आवश्यकता से अधिक संग्रह करता चला जा रहा है जो पाप का कारण है। व्यक्ति धर्म करने में बहुत सोचता है परंतु अधर्म करने में कभी नहीं सोचता। यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। यह विचार दिगंबर जैन मुनि सुप्रभ सागर जी महाराज ने शनिवार को दिगंबर जैन पारसनाथ तीर्थ क्षेत्र पर आयोजित धर्म सभा में व्यक्त किए।
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