उपराष्ट्रपति चुनाव: प्रक्रियाएं और इतिहास के दिलचस्प किस्से
देश में उपराष्ट्रपति चुनाव हमेशा राजनीतिक सरगर्मी और रोचक घटनाओं से जुड़ा रहा है। कल यानी 9 सितंबर को होने वाला चुनाव भी खास है, क्योंकि मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक इस्तीफा देकर यह पद खाली कर दिया। अब एक बार फिर नया उपराष्ट्रपति चुना जाएगा। यह कोई पहली बार नहीं है—अब तक 6 बार ऐसा हुआ है जब कार्यकाल पूरा होने से पहले उपराष्ट्रपति पद खाली हुआ और दोबारा चुनाव करवाने पड़े।
ऐसे चुनावों से जुड़े कई दिलचस्प किस्से भी इतिहास का हिस्सा हैं। उदाहरण के तौर पर, जब पहली बार डॉ. एस. राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति बने थे, तब कहा जाता है कि पंडित नेहरू अपनी सगी बहन विजयलक्ष्मी पंडित को इस पद पर नहीं लाना चाहते थे। उन्होंने खुद पहल कर राधाकृष्णन का नाम आगे बढ़ाया। एक और रोचक प्रसंग तब सामने आया जब उपराष्ट्रपति चुनाव में केवल एक उम्मीदवार को विरोध में वोट मिला था। वह चुनाव के.आर. नारायणन के समय हुआ, जिसमें विपक्षी उम्मीदवार को महज एक वोट हासिल हुआ।
उपराष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से होता है, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा के सांसद मिलकर मतदान करते हैं। यह संवैधानिक पद न केवल राज्यसभा का सभापति होता है, बल्कि राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यवाहक राष्ट्रपति की जिम्मेदारी भी निभाता है। कल का चुनाव इस लिहाज से महत्वपूर्ण होगा कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे हैं, और नतीजा राजनीतिक समीकरणों का अहम संकेत देगा।