भारत रत्न चौधरी चरण सिंह... किसानों के चैंपियन... किसानों के मसीहा

Dec 4, 2025 - 15:08
 0
भारत रत्न चौधरी चरण सिंह... किसानों के चैंपियन... किसानों के मसीहा

 सालों पहले ही मिल जाना चाहिए था सर्वोच्च सम्मान.. देर से ही सही मोदी सरकार ने "चौधरी जी"के उल्लेखनीय कार्यों और सेवाओं को सेल्यूट तो किया, चरण सिंह जैसे जननायक शताब्दियों में है होते हैं पैदा, हिंदुस्तान के हर गांव में चरण सिंह का नाम है आज भी रोशन

जयपुर l चौधरी चरण सिंह देश के अकेले पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो प्रधानमंत्री पद पर रहने के दौरान अपनी वेशभूषा बदलकर पुलिस स्टेशन और अन्य सरकारी विभागों एक कामकाज का निरीक्षण करने के लिए पहुंच जाया करते थे, इस तरह के उनके अनेक किस्से हैं जिनको जानकर और पढ़कर आज का युवा दांतों तले उंगली दबा लेता है, आज तो कोई सरपंच भी बन जाता है तो उसका लाइफस्टाइल और बोलने का अंदाजा अलग हो जाता है लेकिन चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे कई बार उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे देश के उप प्रधानमंत्री भी रहे और फिर प्रधानमंत्री भी बने लेकिन उन्होंने मरते दम तक ना तो अपनी लाइफ स्टाइल बदली, ना अपना व्यवहार बदला, ना अपनी वेशभूषा और खान-पान को बदला,ना अपनी सोच और ना ही अपने संकल्प को बदला, जीवन भर साधारण कपड़े पहने और किसान, गरीब और मजदूर की आवाज को हमेशा बुलंद करते रहे उन्होंने अंग्रेजों के जमाने से आ रहे कई कानून को उत्तर प्रदेश में खत्म करवाया तो किसान के कल्याण और उन्नत खेती के लिए कई कानून का ड्राफ्ट तैयार किया और उन्हें  मंजूर भी करवाया तभी तो उनके निधन के 38 साल बाद भी आज हिंदुस्तान के हर गांव और ढाणी में चौधरी चरण सिंह का नाम रोशन है हर किसान की जुबान पर चौधरी चरण सिंह का नाम छाया रहता है, आज की युवा पीढ़ी जब उनके बारे में बताया जाता है तो उनके किस्से सुनकर युवाओं के रोंगटे खड़े हो जाते हैं उन्हें यह यकीन ही नहीं होता कि आखिर कैसे एक प्रधानमंत्री पुलिस स्टेशन में एक साधारण किसान की वेश में जाकर पुलिस स्टेशन की कार्यप्रणाली की चुपके से जांच पड़ताल कर सकता है लेकिन सच्चाई तो सच्चाई है चौधरी चरण सिंह ऐसे ही महान हस्ती थी जो शताब्दियों में जन्म लेती है l

 राजनीति सुचिता और सिद्धांतों के लिए इंदिरा गांधी से भी ले ली दुश्मनी छोड़ दिया प्रधानमंत्री पद : चौधरी चरण सिंह नैतिक आचरण के लिए जाने जाते थे उनको भ्रष्टाचार बिल्कुल पसंद नहीं था सिद्धांतों की राजनीति करते थे और अपने उसूलों से कभी उन्होंने समझौता नहीं किया इसके लिए उन्होंने एक बार प्रधानमंत्री की कुर्सी तक छोड़ दी थी अन्यथा आजकल प्रधानमंत्री को क्या सरपंच की कुर्सी तक बचाने के लिए लोग न जाने क्या-क्या तरीके अपना लेते हैं, 1979 में भारत में कांग्रेस पार्टी के सहयोग से जनता पार्टी की सरकार  उस समय जनता पार्टी में आंतरिक मतभेद और वैचारिक टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी इसलिए सरकार का संचालन करना संभव नहीं था लेकिन इस समय इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस पार्टी ने चौधरी चरण सिंह को इस कंडीशन के साथ की संजय गांधी के खिलाफ सत्ता के दुरुपयोग और प्रेस सेंसरशिप संबंधी दर्ज मामले वापस ले लिए जाएंगे समर्थन देना सुनिश्चित किया गया लेकिन चौधरी चरण सिंह ने इंदिरा गांधी की इस कंडीशन को मानने से साफ मना कर दिया जिस पर इंदिरा गांधी ने समर्थन वापस ले लिया जिसके परिणाम स्वरूप चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया हालांकि जनवरी 1980 तक उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री पद पर रहने को कहा गया l

 अंग्रेजों के जमाने के जमींदार प्रथा कानून को समाप्त करने में निभाई अग्रणी भूमिका : आजादी मिलने के बाद भी भारत में अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे जमींदारी प्रथा कानून को खत्म करवाने में चौधरी चरण सिंह ने अग्रिम भूमि का निभाई, चौधरी चरण सिंह का जन्म साधारण से भूमिहीन किसान परिवार के घास फूस के कच्चे घर में हुआ था, उनका बचपन अभाव में बीता और उन्होंने गरीब मजदूर और किसान की तकलीफों को नजदीक से देखा ऐसे में ब्रिटिश शासन काल में जमींदारी प्रथा कानून के तहत अंग्रेज और जमींदार दोनों मिलकर किसान का शोषण कर रहे थे इसका अनुभव भी उन्हें खूब था, भारत की आजादी के बाद भी जमींदारी प्रथा कानून को प्रचलन में देखकर चरण सिंह ने इस कानून को खत्म करने के लिए उत्तर प्रदेश में खुद बीड़ा उठाया इसके लिए उन्होंने जमींदारी प्रथा उन्मूलन, भूमिसुधार, किसान की समस्या और समाधान जैसे विषयों को लेकर उन्होंने कई पुस्तक लिखी 1947 में "जमींदारी उन्मूलन :  दो विकल्प" नाम की पुस्तक लिखी तथा 1948 में जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार समिति की ओर से 611 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की, "संयुक्त खेती का एक-रे समस्या और समाधान"नाम की किताब 1964 में लिखी इस तरह से चौधरी चरण सिंह ने किसान, भूमिसुधार, मिट्टी की जांच जैसे विषयों को लेकर अनेक किताब लिखी जिसमें उन्होंने किसान की समस्याओं का जिक्र ही नहीं किया बल्कि समाधान के रास्ते भी बताएं इसी तरह से भूमि सुधार के तरीके और रास्ते बताएं जमींदारी प्रथा के नुकसान का जिक्र करके जमींदार प्रथा को खत्म करने की नितांत आवश्यकता बताई, उनके अनुभव और सुझावों को उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकारों ने स्वीकार भी किया और 1952 में जमींदारी और भूमि सुधार अधिनियम को मंजूर करवाया इसी तरह से 1954 में भूमि संरक्षण कानून को भी पास करवाया, जोत अधिनियम कानून का ड्राफ्ट तैयार करने में चरण सिंह ने बड़ी भूमिका निभाई इसमें अधिकतम जमीन रखने की सीमा को कम किया गया था, कुल मिलाकर चौधरी चरण सिंह ने किसान के कल्याण और विकास के लिए कई नए कानून बनवाने में बड़ी भूमिका निभाई तथा उन्नत और प्रगतिशील खेती के लिए मिट्टी की जांच करवाने की व्यवस्था पर भी गंभीरता से काम किया, इन नए कानून से किसान की हालत काफी सुधरी और खेती में नवाचार भी होने लगे और किसान जो अंग्रेजों और राजा महाराजाओं के जमाने में गुलामी सी जिंदगी जीता हुआ आ रहा था उसके जीवन में खुशहाली और बाहर लाने में चरण सिंह ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई इसीलिए आज उत्तर प्रदेश का ही नहीं बल्कि पूरे देश का किसान उन्हें खूब याद करता है l

 गौ माता को बेचने में यकीन नहीं करते थे चरण सिंह, सीएम की कुर्सी जाने के बाद गाय भी एक अधिकारी को कर दी थी गिफ्ट : गाय की महत्ता को चौधरी चरण सिंह दिल और दिमाग से महसूस किया करते थे बचपन से ही गाय की खूब सेवा की और मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अपने आवास पर गाय रखा करते थे और समय मिलने पर गाय की खूब सेवा किया करते थे 1970 में जब उनकी पार्टी और इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस पार्टी के बीच प्रिवी पर्स कानून को लेकर आपस में टकराव की स्थिति बन गई थी जिसके चलते इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस पार्टी ने चरण सिंह की पार्टी से समर्थन वापस ले लिया था उस समय चरण सिंह कानपुर में थे लेकिन चरण सिंह ने कानपुर से ही मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और वहीं से अपनी गाड़ी और सरकारी आवास लौटा दिया, उस समय उनके आवास पर एक गाय थी तो चरण सिंह ने तत्कालीन सूचना विभाग के निदेशक बलभद्र प्रसाद को कहा कि नौकर और स्टाफ सब चले गए हैं गाय माता की सेवा कौन करेगा, इस गाय को आप ले जाइए हम गौ माता को बेचते नहीं हैं l

 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने चरण सिंह : चौधरी चरण सिंह को 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश का पहला गिर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला जानकारी के अनुसार 1968 में कांग्रेस में मतभेदों के चलते चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी के 16 अन्य नेताओं के साथ कांग्रेस को छोड़ दिया, भ्रष्टाचार और उसे समय ग्रामीण विकास और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए ठीक तरह से योजनाएं नहीं बनाई जा रही थी इसके लिए भी चिंतित थे इसके अलावा उन्हें ऐसा लगता था कि सत्ता में शहरी और उच्च जाति वर्ग के लोगों का मजबूत गठजोड़ हो गया है इसके अलावा उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भानु गुप्ता के लिए नकारे जाने के कारण भी चरण सिंह नाराज थे इसलिए उन्होंने कांग्रेस को छोड़ना उचित समझा 1967 में विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला इसलिए जनसंघ और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और कुछ अन्य दलों ने मिलकर संयुक्त विधायक दल का गठन किया और संयुक्त विधायक गठन दल के नेता के रूप में चौधरी चरण सिंह को चुना गया इस तरह से 3 अप्रैल 1967 को चरण सिंह उत्तर प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने हालांकि चरण सिंह 1991 से लेकर 1967 तक उत्तर प्रदेश की सभी कांग्रेस पार्टी के सरकारों में मंत्री जरूर रहे थे l

   जब चौधरी चरण सिंह को फरवरी 1968 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा  देना पड़ा : 1967 में चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी के कुछ सदस्यों के साथ मिलकर भारतीय क्रांति दल पार्टी की स्थापना की इस दौरान संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी गठबंधन को लगा कि प्रदेश में हिंदी को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा और अंग्रेजी को बढ़ावा दिया जा रहा है इसलिए संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की ओर से अंग्रेजी हटाओ अभियान शुरू किया गया और इसके लिए उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर हिंसक प्रदर्शन भी हुए इस दौरान इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश का दौरा किया तो उस समय प्रदर्शन की वजह से दो सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया इस प्रदर्शन से मुख्यमंत्री चरण सिंह काफी नाराज भी हुए इन हालातो के चलते संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया जिसकी वजह से सरकार गिर गई इस तरह से चरण सिंह को फरवरी 1968 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और फरवरी 1969 तक उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू रहा l

 जब फरवरी 1970 में दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने चरण सिंह : जानकारी के अनुसार 1969 की विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सबसे ज्यादा सीट मिली और दूसरे नंबर पर भारतीय क्रांति दल रही इसलिए कांग्रेस पार्टी के भानु गुप्ता मुख्यमंत्री चुन लिए गए लेकिन इस साल इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी के कई अन्य बड़े नेताओं के बीच आपस में जोरदार मतभेद हो गए जिसकी वजह से इंदिरा गांधी को कांग्रेस पार्टी से हटा दिया गया इस तरह से कांग्रेस पार्टी दो टुकड़ों में विभक्त हो गई कांग्रेस "ओ"जिसमें कांग्रेस पार्टी के कई बड़े नेता शामिल थे और दूसरी इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस पार्टी "आर" चौधरी चरण सिंह इंदिरा गांधी के समर्थन से फरवरी 1969 में दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुन लिए गए l

 इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी में जब चरण सिंह को भी डाल दिया था जेल में : हिंदुस्तान में 1969 से लेकर 1974 तक समाजवादी नेताओं ने इंदिरा गांधी के नाक में दम कर रखा था समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण और जॉर्ज फर्नांडीज नेता इंदिरा गांधी सरकार की नीतियों और उनकी कार्यशाली का जमकर विरोध कर रहे थे संजय गांधी की नीतियों और कई निर्णय का समाजवादी नेता विरोध कर रहे थे 1974 में जॉर्ज फर्नांडीज में पूरे देश में रेल रोको अभियान संपादित किया था जिसमें कई दिनों तक रेल परिवहन का संचालन नहीं हो पाया 1974 में कांग्रेस विरोधी 7 दलों ने मिलकर भारतीय लोक दल की स्थापना की और तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ पूरे देश भर में प्रदर्शन किया  इस बीच जून 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र के मामले में इंदिरा गांधी की नियुक्ति को रद्द कर दिया और 6 साल के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया इस पर इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की लेकिन वहां से उन्हें राहत नहीं मिली हालांकि इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद पर बने रहने को तो कहा गया लेकिन संसद सदस्य के रूप में उनके सभी विशेष अधिकार समाप्त कर दिए गए और उन्हें वोट डालने के लिए भी मना कर दिया गया इसके बाद इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति फारूक दिन अली से 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी का आदेश लागू करवा दिया गया और इस आदेश के लागू होने के बाद इंदिरा गांधी के तमाम विरोधी नेताओं को जेल में डाल दिया गया दिल्ली में जिन इलाकों में मीडिया हाउस के दफ्तर थे वहां की बिजली सप्लाई काट दी गई कई तरीके प्रतिबंध लगा दिए गए और चौधरी चरण सिंह को भी जेल में डाल दिया गया चरण सिंह दिल्ली की तिहाड़ जेल में करीब 9 महीने तक रहे l देश में आपातकाल की अवधि 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक रही l

 जब दिल्ली में वोट क्लब पर चौधरी चरण सिंह की रैली प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई पर पड़ गई थी भारी : यह सच है कि समाजवादी नेता मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह के बीच अच्छे राजनीतिक रिश्ते नहीं रहे 1977 में इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी को सरकार बनाने का मौका मिला उस समय मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह के नाम प्रधानमंत्री पद की दौड़ में थे लेकिन जब चरण सिंह ने यह देखा कि दलित नेता बाबू जगजीवन राम भी पीएम पद की दावेदारी कर रहे हैं तो उन्होंने खुद को पीछे हटा लिया लेकिन आखिरकार मोरारजी देसाई बाजी मार ले गए और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बन गए चौधरी चरण सिंह और बाबू जगजीवन राम दोनों को उप प्रधानमंत्री बनाया गया जिसमें चौधरी चरण सिंह को गृहमंत्री और बाबू जगजीवन राम को रक्षा मंत्री बनाया गया लेकिन यहां पर मंत्रिमंडल के गठन की प्रक्रिया को लेकर जनता पार्टी में मतभेद उभर गए क्योंकि मंत्रिमंडल गठन में कांग्रेस "ओ"के 7 नेताओं को जगह दी गई जबकि बहुमत में सीट हासिल करने में लोक दल और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सांसदों की संख्या का अनुपात ज्यादा था इसके बावजूद भी उन्हें मंत्रिमंडल में कांग्रेस "ओ" की तुलना में कम महत्व दिया गया इसलिए जनता पार्टी में मतभेद तेज हो गए इसके अलावा उस समय राज्यपालों की नियुक्ति को लेकर भी जनता पार्टी के नेताओं में टकराव के हालात बन गए, चौधरी चरण सिंह को शिकायत यह थी कि मोरारजी देसाई किसी की सुनते नहीं है बल्कि खुद ही हर मामले में डिसीजन लेते हैं जिसकी वजह से उत्तर प्रदेश के गन्ना उत्पादक और अन्य किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल रहा इधर मोरारजी देसाई को ऐसा लगता था कि उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान और अन्य किसानों से अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए आर्थिक फंड लेने का चरण सिंह प्रयास कर रहे हैं इसके अलावा चौधरी चरण सिंह इंदिरा गांधी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करवाना चाहते थे जबकि मोरारजी देसाई उस समय के कानून के मुताबिक इंदिरा गांधी के खिलाफ कार्रवाई करना चाहते थे इसलिए इन दोनों के बीच हमेशा राजनीतिक दूरियां बढ़ती रही इस दौरान चौधरी चरण सिंह ने मोरारजी देसाई के बेटे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिए इसके बाद मोरारजी देसाई ने चौधरी चरण सिंह और एक अन्य मंत्री से इस्तीफा मांग लिया, इस पूरे घटनाक्रम पर इंदिरा गांधी की निगाहें टिकी हुई थी चौधरी चरण सिंह कांग्रेस के समय से ही किसानों के बहुत बड़े नेता बन गए थे देश के उत्तर क्षेत्र के चुने गए 100 सांसदों का चरण सिंह को उस समय समर्थन था, चरण सिंह को मंत्री पद से हटा देने के बाद देश के किसानों और ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों को मोरारजी देसाई का यह कृत्य ठीक नहीं लगा, 23 दिसंबर को चरण सिंह का जन्मदिन होता है इसलिए उनके जन्मदिन को व्यापक तौर पर मनाने के लिए एक बड़ा कार्यक्रम तैयार किया गया जिसमें दिल्ली में वोट क्लब जो अभी कर्तव्य पथ और इंडिया गेट के सामने का हिस्सा है वह स्थान चरण सिंह की रैली के लिए सुनिश्चित किया गया, उस समय हरियाणा के मुख्यमंत्री देवीलाल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रामनरेश यादव और बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, मधु लिमिए प्रकाश सिंह बादल कुंभाराम आर्य जैसे कई बड़े नेता चरण सिंह की जन्मदिन की रैली में शामिल हुए और रैली में बड़ी संख्या में लोग उमड़े रैली में उमड़े जनसैला को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे चरण सिंह की लोकप्रियता के आगे तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की लोकप्रियता पूरी तरह से फीकी पड़ गई है, बड़ी बात यह रही कि इस रैली में इंदिरा गांधी ने राजनीतिक चतुराई दिखाते हुए अपने करीबी व्यक्ति को गुलदस्ता देकर चरण सिंह के जन्मदिन का बधाई संदेश भेजा लेकिन मोरारजी देसाई ने चरण सिंह को उस दिन जन्मदिन का बधाई संदेश नहीं भेजा सब इंतजार कर रहे थे कि मोरारजी देसाई चरण सिंह को बधाई संदेश भेजेंगे लेकिन उन्होंने चरण सिंह को बधाई संदेश नहीं भेजा हालांकि इस रैली की बदौलत बाद मोरारजी देसाई को फिर से चरण सिंह को अपने मंत्रिमंडल में लेना पड़ा l

 जब इंदिरा गांधी के गेम प्लान के चक्रव्यूह में उलझ गए थे चरण सिंह : यह सच है चौधरी चरण सिंह कड़क मिजाज के थे लेकिन सीधे और सरल भी थे और उनका उनका दिल अंदर से साफ था सिद्धांत और उसूलों की राजनीति करते थे, जो भी दिल में होता था साफ बोल देते थे मन में कोई बात नहीं रखते थे, वह उन राजनेताओं में नहीं थे जिनके दिल में क्या चल रहा होता है और जुबा पर क्या होता है तभी तो जब जनता पार्टी को बहुमत मिला था और दलित नेता जगजीवन राम ने पीएम पद की दावेदारी की तो उन्होंने खुद की दावेदारी छोड़ दी थी अगर वे चाहते तो मोरारजी देसाई की जगह खुद प्रधानमंत्री उस समय बन सकते थे क्योंकि देश के उत्तर क्षेत्र के 100 से ज्यादा सांसद उन्हें पसंद करते थे लेकिन उन्होंने जगजीवन राम के लिए पीएम पद की दावेदारी छोड़ी इस दौरान कुशल राजनीतिज्ञ इंदिरा गांधी जो दूरदर्शी और कूटनीतिज्ञ अभी मानी जाती थी उनकी निगाहें जनता पार्टी के नेताओं पर थी और जनता पार्टी की हर गतिविधि पर उस समय इंदिरा गांधी की निगाहें टिकी हुई थी और वह हारी हुई बाजी को जीतना चाहती थी इसलिए उन्होंने चौधरी चरण सिंह को उनके जन्मदिन पर वोट क्लब की रैली में गुलदस्ता देकर शुभकामना संदेश भेजा जबकि वह यह भी जानती थी कि चौधरी चरण सिंह उन्हें गिरफ्तार करवाना चाहते हैं लेकिन कुशल और कुटिल राजनीति का परिचय देते हुए इंदिरा गांधी ने चरण सिंह को जन्मदिन का बधाई संदेश भेजा जबकि उन्हीं के साथी और तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने उन्हें जन्मदिन की बधाई नहीं दी इन सब दृष्टिकोण पर इंदिरा गांधी की निगाहें थी और वह चुपचाप अपने गेम प्लान को अंजाम दे रही थी इस प्लान को ना तो चौधरी चरण सिंह समझ पा रहे थे और ना ही मोरारजी देसाई बाद में जब जनता पार्टी के अपने साथ जन संघ के नेताओं को साफ कहा कि अगर उनके साथ रहना है तो आरएस एस को छोड़ना पड़ेगा इस बात को लेकर जनता पार्टी में फिर विवाद पैदा हो गया और लोकसभा में आरएसएस समर्थितजनसंघ के सांसद अलग ग्रुप में बैठ गए जिसकी वजह से मोरारजी देसाई की सरकार संकट में पड़ गई इन सब की वजह से इंदिरा गांधी का प्लान लगातार मजबूत हो रहा था मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा, सरकार अल्पमत में आ गई थी जिस पर इंदिरा गांधी ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए चौधरी चरण सिंह को समर्थन देकर उन्हें प्रधानमंत्री पद पर बिठा दिया जबकि इंदिरा गांधी ने पहले यह सोच लिया था कि चरण सिंह को बहुत ही कम समय के लिए समर्थन देना है इंदिरा गांधी के इस प्लेन को चरण सिंह समझ नहीं पाए उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ भी ले ली लेकिन वे देश के अकेले ऐसे प्रधानमंत्री बने जो कभी लोकसभा में गए ही नहीं कारण यह था कि उनके प्रधानमंत्री पद के काल में लोकसभा का सत्र संचालित ही नहीं हुआ करीब एक महीने बाद ही इंदिरा गांधी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया उस समय चर्चा रहेगी इंदिरा गांधी संजय गांधी के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने का चरण सिंह पर दबाव बना रही थी लेकिन चरण सिंह ने मुकदमे वापस लेने से साफ मना कर दिया जिसके बाद इंदिरा गांधी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया लेकिन बहुत से लोग यह भी कहते हैं कि इंदिरा गांधी ने पहले ही सोच लिया था कि चरण सिंह को ज्यादा समय तक समर्थन नहीं देना है हालांकि चरण सिंह अगले 6 महीने तक प्रधानमंत्री रहे क्योंकि चुनाव आयोग ने चुनाव करवाने के लिए 6 महीने का समय मांगा था इसलिए प्रधानमंत्री के रूप में चरण सिंह 6 महीने तक और रहे कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भोले भाले चरण सिंह कहीं ना कहीं इंदिरा गांधी की राजनीति कूटनीतिज्ञता को नहीं समझ पाए, उस समय चरण सिंह को थोड़ी बहुत बुराई भी झेलनी पड़ी क्योंकि वे इंदिरा गांधी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करवाना चाहते थे लेकिन इंदिरा गांधी के समर्थन से ही उन्होंने सरकार बना ली इसलिए लोगों को बात करने का मौका मिल गया इन सब राजनीतिक घटनाक्रमों की वजह से कहीं ना कहीं जनता पार्टी के नेताओं की लोकप्रियता पर भी विपरीत असर पड़ा जिसकी वजह से अगले लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा और कांग्रेस सरकार बनाने में सफल हो गई l

स्वतंत्रता आंदोलन में चरण सिंह ने निभाई अग्रणी भूमिका, स्वामी दयानंद सरस्वती और महात्मा गांधी से थे काफी प्रभावित : साधारण से भूमिहीन किसान परिवार में जन्मे चौधरी चरण सिंह स्कूल और कॉलेज के दिनों से ही स्वामी दयानंद सरस्वती के आदर्श, सिद्धांत, उनकी कार्य शैली और जीवन शैली को पूरी तरह से अपनाने लगे थे एक तरह से चरण सिंह ने आर्य समाज को अपना सा लिया था, सादा जीवन उच्च विचार, नैतिक आचरण, गरीब निर्धन और मजदूरों की भलाई, ग्रामीणों की तरक्की और ग्रामीण क्षेत्र का विकास जैसी भावनाएं चरण सिंह के जीवन का युवा अवस्था में ही अभिनव अंग बन गई थी इसदौरान महात्मा गांधी के व्यक्तित्व से भी चरण सिंह काफी प्रभावित रहे इसलिए भारत के आजादी के आंदोलन में चरण सिंह कूद पड़े आगरायूनिवर्सिटी की  पढ़ाई कंप्लीट करने के बाद और वकालत शुरू करने के दौरान ही चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन कर लिया और मेरठ जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी बने तथा तत्कालीन कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं की अगुवाई में भारत के स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में खुद को पूरी तरह से समर्पित कर दिया और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बड़े-बड़े आंदोलन और रैली में अग्रणी भूमिका निभाई कई बार जेल गए और ब्रिटिश पुलिस की लाठियां भी खाई वर्ष1930 में नमक कानून के विरोध में चरण सिंह ने हिंडन नदी के तट पर अंग्रेजों की नीति के खिलाफ खुद नमक बनाया जिस पर चरण सिंह को अंग्रेजों ने 12 साल तक जेल में डाल दिया, 1940 में भी व्यक्ति सत्याग्रह के तहत उन्हें फिर जेल भेज दिया गया 1942 में भी भारत छोड़ो आंदोलन में चरण सिंह को फिर से जेल भेज दिया गया इस तरह से तत्कालीन बड़े-बड़े स्वतंत्रता सेनानियों के साथ चरण सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ पूरी ताकत से लंबी लड़ाई लड़ी l

 कच्चे घास फूस के मकान में जन्म लेने वाला बच्चा बड़ा होने पर बन गया हिंदुस्तान के किसानों का मसीहा : चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर गांव में भूमिहीन किसान वीर सिंह के कच्चे घर में हुआ, वीर सिंह के पांच बच्चे थे जिनमें चौधरी चरण सिंह सबसे बड़े थे वीर सिंह के पास जमीन नहीं थी इसलिए परिवार का लालन-पालन करने के लिए खेती के लिए जमीन के टुकड़े की तलाश में नूरपुर गांव को छोड़ना पड़ा और भूमि की तलाश में पहले भादुला गांव और फिर जानी खुर्द गांव आ गए यह गांव नूरपुर से ज्यादा दूर नहीं थे और मेरठ जिले में ही उस समय आते थे, चरण सिंह की स्कूली शिक्षा गांव से 3 किलोमीटर दूर सरकारी स्कूल में हुई वर्ष 1923 मेंआगरा की कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली 1925 में आगरा यूनिवर्सिटी से ही इतिहास विषय में स्नाकोत्तर की भी डिग्री ली और 1927 में मेरठ की कॉलेज से तथा गाजियाबाद में वकालत की प्रैक्टिस भी शुरू की इस दौरान ही उन्होंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई उत्तर प्रदेश कांग्रेस में उन्होंने कई साल बिताए, कई मुख्यमंत्री के शासनकाल में मंत्रिमंडल के सदस्य रहे, उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री बने देश के उप प्रधानमंत्री भी बने और देश के प्रधानमंत्री भी बने, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकारों में कई बड़े-बड़े विभागों के मंत्री बने केंद्र सरकार में गृह और वित्त मंत्रालय का काम भी देखा, बागपत से सांसद रहे, देश के किसानों की भलाई के लिए कई बड़े कानून बनाए, गांव के विकास के लिए कई बड़ी योजनाएं बनाई, ईमानदारी की जीती जागती मिसाल थे चरण सिंह जो जीवन भर बिल्कुल सादा कपड़े में रहे और सादा जीवन जिया भारत में अब तक सिर्फ चरण सिंह को ही किसानों का सबसे बड़ा नेता और सबसे बड़ा मसीहा माना जाता है क्योंकि चरण सिंह ही ऐसे शख्स थे जिन्होंने जीवन भर किसान की आवाज को बुलंद रखा यही वजह है कि आज भी हर किसान चौधरी चरण सिंह का नाम सुनते ही आदर और सम्मान से सर झुका लेता है l

1951 से 1967 तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सरकारों में मंत्री रहे चरण सिंह, कई बड़ी उपलब्धियां चरण सिंह के अकाउंट में दर्ज : चौधरी चरण सिंह 1951 से लेकर 1967 तक प्रदेश में विभिन्न कांग्रेस पार्टी की सरकारों में मंत्रिमंडल के सदस्य रहे और कई बड़े विभागों की जिम्मेदारी इन्हें दी गई सबसे पहले 1937 में चरण सिंह छपरौली से निर्वाचित हुए इसके बाद 1946, 1952, 1962 और 1967 में निर्वाचित हुए 1946 में गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिन रहे और राजस्व चिकित्सा लोक स्वास्थ्य जैसे विभागों का काम देखा इसी तरह से 1951 में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया और न्याय और सूचना विभाग की जिम्मेदारी दी गई 1954 में डॉक्टर संपूर्णानंद के मंत्रिमंडल में राजस्व और कृषि विभाग की जिम्मेदारी दी गई 1960 में सीबी गुप्ता के मंत्रिमंडल में ग्रह और कृषि मंत्रालय की जिम्मेदारी चरण सिंह को दी गई 1962 में सुचेता कृपलानी के मंत्रिमंडल में कृषि मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई और 1966 में स्थानीय स्वास्थ्य शासन विभाग की जिम्मेदारी दी गई l चरण सिंह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे, बागपत लोकसभा सीट से सांसद भी रहे l

चौधरी चरण सिंह ने कई बड़े निर्णय और फैसले लिए जिनकी वजह से उन्हें आज तक किसानों का सबसे बड़ा लीडर, किसानों का चैंपियन और किसानों का मसीहा कहा जाता है चौधरी चरण सिंह ने यूं तो अनेक उल्लेखनीय कार्य किए हैं जिनमें प्रमुख रूप से जमींदारी उन्मूलन अधिनियम को लागू करवाना, पटवारी राज से मुक्ति दिलाना, चकबंदी अधिनियम, कृषि आय को आयकर से मुक्ति, वायरलेस से युक्त पुलिस का पहरा, जोत वही दिलाने जैसे अनेक कार्य हैं चौधरी चरण सिंह जातिवाद के खिलाफ थे और अंतर राज्य विवाह के समर्थक थे, चौधरी चरण सिंह ने कृषि उपज के एक दूसरे के राज्य में आवागमन पर लगी हुई पाबंदी को भी हटाया l

 अपने लंबे पोलिटिकल कैरियर में चरण सिंह पार्टी बनाते रहे और नाम बदलते रहे : शुरू में सबसे पहले चौधरी चरण सिंह ने भारतीय क्रांति दल की स्थापना की थी बाद में 1974 में इसका नाम लोक दल रखा गया 1977 में लोक दल का जनता पार्टी में विलय हो गया 1980 में जनता पार्टी में हुए विवाद की स्थिति में चरण सिंह ने जनता पार्टी "एस"की स्थापना की और फिर 1980 के लोकसभा चुनाव के समय जनता पार्टी एस का नाम बदलकर दलित मजदूर किसान पार्टी नाम रख दिया लेकिन हेमवती नंदन बहुगुणा ने खुद को इस पार्टी से अलग कर लिया फिर 1985 में चरण सिंह ने लोक दल का गठन किया 1987 में चरण सिंह का निधन हो गया 1987 में चरण सिंह के पुत्र अजीत सिंह का लोक दल में प्रभाव बढ़ गया तो फिर 1988 में लोक दल का जनता दल में विलय हो गया बाद में 1996 में चरण सिंह के पुत्र अजीत सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल के नाम से नई पार्टी का गठन किया l

चौधरी चरण सिंह और अजीत सिंह की विरासत को शानदार तरीके से संभाल रहे हैं जयंत चौधरी : 29 में 1987 को चौधरी चरण सिंह का निधन हुआ बाद में चरण सिंह के बाद अजीत सिंह ने अपने पिता के आदर्श और उनके सिद्धांतों पर चलते हुए उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत बनाए रखा 1996 में अजीत सिंह ने राष्ट्रीय लोक दल की स्थापना भी की 2021 में कोरोना की वजह से उनका निधन हुआ उसके बाद अजीत सिंह के पुत्र जयंत चौधरी अपने दादा और पिता की विरासत को बहुत अच्छी तरह से संभाले हुए हैं जयंत चौधरी वर्तमान में केंद्र की मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके बहुत अच्छे पॉलिटिकल रिश्ते हैं मोदी सरकार ने ही चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया है इसलिए जयंत चौधरी केंद्र की मोदी सरकार को लेकर पूरी तरह से पॉजिटिव है, वैसे देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित करके एक तीर से कई निशाने साधे हैं चौधरी चरण सिंह देश के इकलौते सबसे बड़े नंबर वन लोकप्रिय किसान माने जाते हैं भले ही उनका निधन हुए 38 साल हो गए लेकिन हर किसान परिवार के घर में आज भी उनके नाम के चर्चा होते हैं इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भारत रत्न देकर देश के किसानों का दिल जीत लिया किसान बिलों को लेकर केंद्र की मोदी सरकार को काफी कुछ भला बुरा सुनने को मिला था लेकिन जब दिवंगतचौधरी चरण सिंह को मोदी सरकार ने इतने बड़े सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया तो किसान मोदी सरकार से खुश भी हुए इधर जयंत चौधरी एनडीए का हिस्सा है मोदी कैबिनेट में शामिल हैं इसलिए चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देकर पीएम नरेंद्र मोदी ने एक तरफ राष्ट्रीय लोक दल से अपने रिश्तों को मजबूत किया है तो दूसरी तरफ देश के किसानों में भी मोदी सरकार के प्रति अच्छा संदेश दिया है तीसरा यह भी है कि चौधरी चरण सिंह भारत रत्न के हकदार थे यह पुरस्कार उन्हें बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था लेकिन पूर्व की केंद्र सरकारों ने चौधरी चरण सिंह को इस पुरस्कार से वंचित रखा क्यों रखा यह भी एक बड़ा सवाल है क्योंकि जानकारी लोगों का कहना है कि चौधरी चरण सिंह ने अपना लंबा पोलिटिकल कैरियर कांग्रेस पार्टी में ही सबसे अधिक समय तक बिताया था भले ही बाद में उन्होंने खुद की पार्टी बना ली हो लेकिन चौधरीचरण सिंह पक्के आदर्श कांग्रेस वादी नेता थे इसके बावजूद भी उन्हें भारत रत्न नहीं दिया गया यह बात अलग है 

  चौधरी चरण सिंह से जुड़ा एक मजेदार किस्सा, आज के राजनेताओं के लिए सीख : कड़क मिजाज के चौधरी चरण सिंह सीधे सरल और सौम्य थे, ईमानदारी और नैतिक आचरण के जीवंत मिसाल थे, किसान लीडर से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक का उनका जीवन सफर काफी रोचक रहा, वे पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जो कभी लोकसभा नहीं गए क्योंकि उनके प्रधानमंत्री काल में लोकसभा का सत्र संचालित ही नहीं हुआ, उनके जीवन प्रधानमंत्री शासन काल का एक रोचक किस्सा कुछ इस तरह से है बात 1979 की है जब इटावा के उसराहार पुलिस स्टेशन में मैले कपड़े पहने और बिना चप्पल के किसान की वेशभूषा में एक व्यक्ति एंट्री करता है, यह व्यक्ति पुलिस स्टेशन में इधर-उधर देखता है तभी पुलिस स्टेशन में मौजूद एक हेड कांस्टेबल की निगाह उस किसान पर टिक जाती है हेड कांस्टेबल उससे पूछता है क्या बात हो गई भाई कैसे आए हो जिस पर किसान कहता है मेरठ से यहां एक रिश्तेदार से बेल खरीदने आया था लेकिन रास्ते में उसकी जेब कट गई किसी ने पैसे चुरा लिए उसकी रिपोर्ट लिखाने आया हूं यह सुन हेड कांस्टेबल बोला इतनी दूर से यहां बेल खरीदने आए हो इस बात की क्या गारंटी है कि तुम्हारी जेब कटी है हो सकता है तुम्हारे पैसे से गिर गए हैं या फिर तुमने उन पैसों को खाने-पीने में खर्च कर दिए हो और अब घर वालों की डांट से बचने के लिए तुम जेब काटने का बहाना बना रहे हो जो तुम्हारी रपट नहीं लिखी जाएगी ऐसा सुनकर किसान काफी हताश हो गया और पुलिस स्टेशन के एक कोने में जाकर चुपचाप खड़ा हो गया तभी पुलिस स्टेशन में नियुक्त एक अन्य सिपाही उसके पास आता है और उसे कहता है अगर तुम कुछ पैसे का जुगाड़ कर दो तो तुम्हारी रपट निकाली जाएगी सिपाही की बात सुनकर किसान कुछ देर तक सोचता है और फिर पैसा देने के लिए तैयार हो जाता है जिस पर थाने में नियुक्त मुंशी किसान की रपट पूरी लिखने के बाद मुंशी किसान से कहता है बाबा हस्ताक्षर करोगे या अंगूठा लगाओगे जिस पर किसान ने कहा मैं पढ़ा लिखा नहीं हूं अंगूठा लगाऊंगा यह सुनकर किसान ने रपट का कागज और अंगूठा निशानी के रपट का कागज किसान की ओर बढ़ने लगता है तभी किसान ने अपने कुर्ते की जेब से एक कलम और अंगूठा निशानी की मोहर निकाली और रपट पर मोहर से ठप्पा लगा दिया और कुछ लिख दिया यह देख मुंशी चकित रह गया उसने रपट को पलट कर देखा तो प्रधानमंत्री भारत सरकार मोहर पर अंकित था तथा सिग्नेचर के रूप में चौधरी चरण सिंह लिखा हुआ देखकर मुंशी घबरा गया यह देख कर पूरे पुलिस स्टेशन में हड़कंप मच गया और पुलिस स्टेशन में नियुक्त अधिकारी और कर्मचारी घबरा गए उन्हें यह पता चल गया था कि यह कोई किसान नहीं बल्कि भारत के प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह है इस तरह के अनेक किस्से चौधरी चरण सिंह के इस सुनहरे पोलिटिकल कैरियर के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखे हुए हैं निश्चित रूप से चौधरी चरण सिंह भ्रष्टाचार को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे ग्रामीण विकास को ज्यादा तवज्जो देते थे उस समय गरीब मजदूर और किसानों के साथ अत्याचार ज्यादा होते थे इसलिए वे खुद ही सरकारी दफ्तरों की कार्यशैली और सरकारी कर्मचारियों के व्यवहार को देखने के लिए सरकारी डिपार्टमेंट और पुलिस स्टेशन में अपना हुलिया बदलकर पहुंच जाते थे l

Jaipur Times जयपुर टाइम्स के साथ आप नवीनतम हिंदी समाचार प्राप्त कर सकते हैं। आप अपने विज्ञापन को राजस्थान में प्रकाशित कर सकते हैं।