देखते हैं कोई हमारा क्या बिगाड़ता है...

देखते हैं कोई हमारा क्या बिगाड़ता है...


अलवर। हम जाए तो कहां जाए, हमारा भी अधिकार है यहां बैठना। जब आमजन सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर लेता है ओर उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती  है तो हम भी तो यहां बीच सड़क पर बैठ गए तो क्या हुआ। संभवत: कुछ इसी भाषा में ये आवारा गाये भी कहते दिखाई दे रहे हैं। देखते हैं कि प्रशासन हमारा क्या बिगाड़ता है। ऐसा ही नजारा बुधवार को शहर के बीच होपसर्कस के पास नगर निगम की ओर जाने वाले रास्ते पर दिखाई दिया। जहां अनेक आवारा गाये बीच सड़क पर बैठी हुई थी ओर दुपहिया व चौपहिया वाहन चालक अपने वाहन को बचाते हुए निकलते दिखाई दिए। यदि जरा भी ये आवारा गाये बिगड जाएं तो क्या होगा? ये तो उसी समय पता चलेगा जब ये सब होगा।
ये बुधवार को कोई नहीं बात नहीं है हर दिन की कहानी बन गई है जबकि नगर निगम मेंं बैठक हो या प्रशासन स्तर पर बैठक में इन आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए सख्त हिदायतें दी जाती है लेकिन फिर वहीं स्थिति दिखाई देती है। प्रशासन से इस संबंध में बात की जाती है तो वे बताते हैं कि इन आवारा गायों को पकड़कर कांजी हाउस में बन्द कर देते हैैं ओर अनेक जगहों से आवारा गायों को पकड़ा भी है फिर भी ये कहां से आ जाती है हर दिन इतनी गाये! अब ये तो गायों को पालने वाले जाने या फिर पकड़कर कांजी हाउस में बन्द करने वाले ही जाने।
यदि देखा जाए तो हर बार जिलास्तरीय समीक्षात्मक बैठक में अनेक हिदायतें दी जाती हैं ओर यहां तक कह दिया जाता है कि यदि किसी भी काम में कोताही सामने आई तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। आखिर जब ऐसे नजारे शहर में दिखाई देते हैं तो इसमें कोताही है या फिर बेहतर स्थिति। यदि कोताही है तो फिर सख्त कार्रवाई कहां है ओर बेहतर स्थिति है तो फिर क्यों समीक्षात्मक बैठक में ये बात कही जाती है। आखिर ये कौन से बोल है दिखावे के या फिर वास्तविक काम के। आखिर शहर को कब मिलेगी इन आवारा गायों से राहत।