जाटों के नायक और प्लेटो "महाराजा सूरजमल"
हिंदुस्तान के अकेले योद्धा शासक जिन्होंने विदेशी आक्रांता, मुगल और अंग्रेजों के आगे घुटने नहीं टेके, करीब 80 युद्ध लड़े एक में भी पराजित नहीं हुए और मुगलों से आगरे का किला भी जीता, मुगल शासको और विदेशी आक्रांताओं से बज के मंदिरों की की रक्षा, लोहागढ़ के किले का निर्माण करवाया जिसे अंग्रेजों का बारूद भी नहीं कर पाया नष्ट, जयपुर के महाराजा जय सिंह से भी थी दोस्ती और भरतपुर राज घराने के पहले अधिकृत महाराज बने
जयपुर l राजस्थान का इतिहास राजघरानों से भरा पड़ा है, यहां छोटी बड़ी रियासतों से ताल्लुक रखने वाले राजा महाराजाओं की वीर गाथाओं के किस्से इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज भी हैं राजस्थान को राजपूताना इसलिए कहा जाता है कि यहां अधिकांश शासक राजपूत ही हुआ करते थे और धन, दौलत सोना, चांदी, जेवरात, सैन्य शक्ति जैसे मामलों में प्रदेश के कई राजघराने पूरे देश में ख्याति प्राप्त थे लेकिन यह भी सच है कि प्रदेश में कई राजा ऐसे भी हुए जिन्होंने अपने निजी स्वार्थ और अपनी राजगद्दी को बचाएं रखने में विदेशी आक्रांताओं के आगे नतमस्तक हुए और उनकी हर इच्छा को पूरी किया उनके कहे अनुसार काम किया तो कई राजा ऐसे भी जो विदेशी आक्रांतों की शक्ति को देखकर घबरा गए और खुद सरेंडर किया लेकिन प्रदेश का एक इकलौता राज घराना ऐसा भी रहा जिसके राजा महाराजाओं ने कभी भी किसी भी विदेशी आक्रांता, मुगल शासक और अंग्रेजों के आगे नतमस्तक नहीं हुए बल्कि जिस किसी ने भी भरतपुर राजघराने की ओर आंख उठाने और कदम बढ़ाने की कोशिश की तो या तो उस विदेशी आक्रांता को युद्ध का मैदान छोड़कर भागना पड़ा या फिर भरतपुर राजघराना के राजाओं के आगे नतमस्तक होना पड़ा या फिर युद्ध में सर कटवाना पड़ा, जी हां भरतपुर राजघराना राजस्थान का ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान का इकलौता राज घराना रहा जिसे कभी भी किसी की गुलामी नहीं की बल्कि जिस किसी ने भी भरतपुर राज घराने को ललकार भरतपुर राजघराने के राजा दोनों हाथों में तलवार लेकर युद्ध के मैदान में आ जाते थे और जब तक युद्ध समाप्त नहीं हो जाता, दुश्मन पराजय स्वीकार नहीं कर लेता था तब तक युद्ध के मैदान में डटे रहे, खास तौर से जब तक सूरजमल के हाथों में भरतपुर राजघराने की कमान रही तब तक भरतपुर राजघराने की ताकत को उस समय मराठा, मुगल शासक, अंग्रेज और विदेशी आक्रांता सब सैल्यूट मारते भी दिखे हालांकि यह बात अलग है कि महाराजा सूरजमल के निधन के बाद इस राजघराने की ताकत कमजोर जरूर हो गई थी लेकिन फिर भी इतिहास गवाह है कि भरतपुर राजघराने में कभी भी किसी विदेशी के आगे सर नहीं झुकाया l
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