बेलछी नरसंहार: दलितों की चीखों से दहला बिहार नरसंहार की पृष्ठभूमि

साल 1977, आपातकाल हटे केवल 64 दिन हुए थे। 24 मई की सुबह बिहार के पटना जिले के बेलछी गांव में ऐसा खूनखराबा हुआ जिसने देश को हिला दिया। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी, बिहार में राष्ट्रपति शासन। इसी माहौल में महावीर महतो नामक कुर्मी जमींदार ने दलितों के खिलाफ भयावह साजिश रची।
घटनाक्रम
महावीर और उसके साथियों ने सिंघवा पासवान और अन्य दलित ग्रामीणों को धोखे से बुलाया और बर्बर तरीके से हमला किया। पहले उन्हें लाठी-डंडों से पीटा गया, फिर खेत में ले जाकर गोलियों से भून दिया। कुल 11 दलित ग्रामीणों की हत्या कर दी गई। मृतकों को खेत में पहले से सजाई गई चिता पर डालकर जला दिया गया।
हैवानियत की हदें
इस नरसंहार की निर्ममता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गोली लगने के बाद भी जिंदा 12 साल के लड़के को कई बार जलती चिता में फेंका गया। आखिरकार उसकी गर्दन काटकर आग में झोंक दी गई।
राजनीतिक असर
इस वीभत्स घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हाथी पर बैठकर बेलछी पहुंचीं और पीड़ित परिवारों से मिलकर रो पड़ीं। बाद में यह नरसंहार बिहार की राजनीति में दलित सशक्तिकरण और जातीय संघर्ष की प्रतीक घटना बन गया।
बेलछी नरसंहार भारतीय राजनीति का वह काला अध्याय है, जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है।